طسم 1
ता सीन मीम
تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ 2
ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें है
لَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَفْسَكَ أَلَّا يَكُونُوا مُؤْمِنِينَ 3
(ऐ रसूल) शायद तुम (इस फिक्र में) अपनी जान हलाक कर डालोगे कि ये (कुफ्फार) मोमिन क्यो नहीं हो जाते
إِنْ نَشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِمْ مِنَ السَّمَاءِ آيَةً فَظَلَّتْ أَعْنَاقُهُمْ لَهَا خَاضِعِينَ 4
अगर हम चाहें तो उन लोगों पर आसमान से कोई ऐसा मौजिज़ा नाज़िल करें कि उन लोगों की गर्दनें उसके सामने झुक जाएँ
وَمَا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنَ الرَّحْمَٰنِ مُحْدَثٍ إِلَّا كَانُوا عَنْهُ مُعْرِضِينَ 5
और (लोगों का क़ायदा है कि) जब उनके पास कोई कोई नसीहत की बात ख़ुदा की तरफ से आयी तो ये लोग उससे मुँह फेरे बगैर नहीं रहे
فَقَدْ كَذَّبُوا فَسَيَأْتِيهِمْ أَنْبَاءُ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ 6
उन लोगों ने झुठलाया ज़रुर तो अनक़रीब ही (उन्हें) इस (अज़ाब) की हक़ीकत मालूम हो जाएगी जिसकी ये लोग हँसी उड़ाया करते थे
أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الْأَرْضِ كَمْ أَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ 7
क्या इन लोगों ने ज़मीन की तरफ भी (ग़ौर से) नहीं देखा कि हमने हर रंग की उम्दा उम्दा चीजें उसमें किस कसरत से उगायी हैं
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 8
यक़ीनन इसमें (भी क़ुदरत) ख़ुदा की एक बड़ी निशानी है मगर उनमें से अक्सर ईमान लाने वाले ही नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 9
और इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार यक़ीनन (हर चीज़ पर) ग़ालिब (और) मेहरबान है
وَإِذْ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰ أَنِ ائْتِ الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ 10
(ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने मूसा को आवाज़ दी कि (इन) ज़ालिमों फिरऔन की क़ौम के पास जाओ (हिदायत करो)
قَوْمَ فِرْعَوْنَ ۚ أَلَا يَتَّقُونَ 11
क्या ये लोग (मेरे ग़ज़ब से) डरते नहीं है
قَالَ رَبِّ إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُكَذِّبُونِ 12
मूसा ने अर्ज़ कि परवरदिगार मैं डरता हूँ कि (मुबादा) वह लोग मुझे झुठला दे
وَيَضِيقُ صَدْرِي وَلَا يَنْطَلِقُ لِسَانِي فَأَرْسِلْ إِلَىٰ هَارُونَ 13
और (उनके झुठलाने से) मेरा दम रुक जाए और मेरी ज़बान (अच्छी तरह) न चले तो हारुन के पास पैग़ाम भेज दे (कि मेरा साथ दे)
وَلَهُمْ عَلَيَّ ذَنْبٌ فَأَخَافُ أَنْ يَقْتُلُونِ 14
(और इसके अलावा) उनका मेरे सर एक जुर्म भी है (कि मैने एक शख्स को मार डाला था)
قَالَ كَلَّا ۖ فَاذْهَبَا بِآيَاتِنَا ۖ إِنَّا مَعَكُمْ مُسْتَمِعُونَ 15
तो मैं डरता हूँ कि (शायद) मुझे ये लाग मार डालें ख़ुदा ने कहा हरगिज़ नहीं अच्छा तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ हैं
فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُولَا إِنَّا رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ 16
और (सारी गुफ्तगू) अच्छी तरह सुनते हैं ग़रज़ तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ और कह दो कि हम सारे जहाँन के परवरदिगार के रसूल हैं (और पैग़ाम लाएँ हैं)
أَنْ أَرْسِلْ مَعَنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ 17
कि आप बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए
قَالَ أَلَمْ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدًا وَلَبِثْتَ فِينَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِينَ 18
(चुनान्चे मूसा गए और कहा) फिरऔन बोला (मूसा) क्या हमने तुम्हें यहाँ रख कर बचपने में तुम्हारी परवरिश नहीं की और तुम अपनी उम्र से बरसों हम मे रह सह चुके हो
وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ الَّتِي فَعَلْتَ وَأَنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ 19
और तुम अपना वह काम (ख़ून क़िब्ती) जो कर गए और तुम (बड़े) नाशुक्रे हो
قَالَ فَعَلْتُهَا إِذًا وَأَنَا مِنَ الضَّالِّينَ 20
मूसा ने कहा (हाँ) मैने उस वक्त उस काम को किया जब मै हालते ग़फलत में था
فَفَرَرْتُ مِنْكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكْمًا وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُرْسَلِينَ 21
फिर जब मै आप लोगों से डरा तो भाग खड़ा हुआ फिर (कुछ अरसे के बाद) मेरे परवरदिगार ने मुझे नुबूवत अता फरमायी और मुझे भी एक पैग़म्बर बनाया
وَتِلْكَ نِعْمَةٌ تَمُنُّهَا عَلَيَّ أَنْ عَبَّدْتَ بَنِي إِسْرَائِيلَ 22
और ये भी कोई एहसान हे जिसे आप मुझ पर जता रहे है कि आप ने बनी इसराईल को ग़ुलाम बना रखा है
قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ الْعَالَمِينَ 23
फिरऔन ने पूछा (अच्छा ये तो बताओ) रब्बुल आलमीन क्या चीज़ है
قَالَ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ إِنْ كُنْتُمْ مُوقِنِينَ 24
मूसा ने कहाँ सारे आसमान व ज़मीन का और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है (सबका) मालिक अगर आप लोग यक़ीन कीजिए (तो काफी है)
قَالَ لِمَنْ حَوْلَهُ أَلَا تَسْتَمِعُونَ 25
फिरऔन ने उन लोगो से जो उसके इर्द गिर्द (बैठे) थे कहा क्या तुम लोग नहीं सुनते हो
قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ 26
मूसा ने कहा (वही ख़ुदा जो कि) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे बाप दादाओं का परवरदिगार है
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ الَّذِي أُرْسِلَ إِلَيْكُمْ لَمَجْنُونٌ 27
फिरऔन ने कहा (लोगों) ये रसूल जो तुम्हारे पास भेजा गया है हो न हो दीवाना है
قَالَ رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ إِنْ كُنْتُمْ تَعْقِلُونَ 28
मूसा ने कहा (वह ख़ुदा जो) पूरब पश्चिम और जो कुछ इन दोनों के दरमियान (सबका) मालिक है अगर तुम समझते हो (तो यही काफी है)
قَالَ لَئِنِ اتَّخَذْتَ إِلَٰهًا غَيْرِي لَأَجْعَلَنَّكَ مِنَ الْمَسْجُونِينَ 29
फिरऔन ने कहा अगर तुम मेरे सिवा किसी और को (अपना) ख़ुदा बनाया है तो मै ज़रुर तुम्हे कैदी बनाऊँगा
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَيْءٍ مُبِينٍ 30
मूसा ने कहा अगरचे मैं आपको एक वाजेए व रौशन मौजिज़ा भी दिखाऊ (तो भी)
قَالَ فَأْتِ بِهِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ 31
फिरऔन ने कहा (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो ला दिखाओ
فَأَلْقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُبِينٌ 32
बस (ये सुनते ही) मूसा ने अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दी फिर तो यकायक वह एक सरीही अज़दहा बन गया
وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاءُ لِلنَّاظِرِينَ 33
और (जेब से) अपना हाथ बाहर निकाला तो यकायक देखने वालों के वास्ते बहुत सफेद चमकदार था
قَالَ لِلْمَلَإِ حَوْلَهُ إِنَّ هَٰذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ 34
(इस पर) फिरऔन अपने दरबारियों से जो उसके गिर्द (बैठे) थे कहने लगा
يُرِيدُ أَنْ يُخْرِجَكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ بِسِحْرِهِ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ 35
कि ये तो यक़ीनी बड़ा खिलाड़ी जादूगर है ये तो चाहता है कि अपने जादू के ज़ोर से तुम्हें तुम्हारे मुल्क से बाहर निकाल दे तो तुम लोग क्या हुक्म लगाते हो
قَالُوا أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَابْعَثْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ 36
दरबारियों ने कहा अभी इसको और इसके भाई को (चन्द) मोहलत दीजिए
يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٍ 37
और तमाम शहरों में जादूगरों के जमा करने को हरकारे रवाना कीजिए कि वह लोग तमाम बड़े बड़े खिलाड़ी जादूगरों की आपके सामने ला हाज़िर करें
فَجُمِعَ السَّحَرَةُ لِمِيقَاتِ يَوْمٍ مَعْلُومٍ 38
ग़रज़ वक्ते मुकर्रर हुआ सब जादूगर उस मुक़र्रर के वायदे पर जमा किए गए
وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلْ أَنْتُمْ مُجْتَمِعُونَ 39
और लोगों में मुनादी करा दी गयी कि तुम लोग अब भी जमा होगे
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ السَّحَرَةَ إِنْ كَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ 40
या नहीं ताकि अगर जादूगर ग़ालिब और वर है तो हम लोग उनकी पैरवी करें
अलग़रज जब सब जादूगर आ गये तो जादूगरों ने फिरऔन से कहा कि अगर हम ग़ालिब आ गए तो हमको यक़ीनन कुछ इनाम (सरकार से) मिलेगा
قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ إِذًا لَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ 42
फिरऔन ने कहा हा (ज़रुर मिलेगा) और (इनाम क्या चीज़ है) तुम उस वक्त (मेरे) मुकररेबीन (बारगाह) से हो गए
قَالَ لَهُمْ مُوسَىٰ أَلْقُوا مَا أَنْتُمْ مُلْقُونَ 43
मूसा ने जादूगरों से कहा (मंत्र व तंत्र) जो कुछ तुम्हें फेंकना हो फेंको
فَأَلْقَوْا حِبَالَهُمْ وَعِصِيَّهُمْ وَقَالُوا بِعِزَّةِ فِرْعَوْنَ إِنَّا لَنَحْنُ الْغَالِبُونَ 44
इस पर जादूगरों ने अपनी रस्सियाँ और अपनी छड़ियाँ (मैदान में) डाल दी और कहने लगे फिरऔन के जलाल की क़सम हम ही ज़रुर ग़ालिब रहेंगे
فَأَلْقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ 45
तब मूसा ने अपनी छड़ी डाली तो जादूगरों ने जो कुछ (शोबदे) बनाए थे उसको वह निगलने लगी
فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ 46
ये देखते ही जादूगर लोग सजदे में (मूसा के सामने) गिर पडे
قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ 47
और कहने लगे हम सारे जहाँ के परवरदिगार पर ईमान लाए
जो मूसा और हारुन का परवरदिगार है
फिरऔन ने कहा (हाए) क़ब्ल इसके कि मै तुम्हें इजाज़त दूँ तुम इस पर ईमान ले आए बेशक ये तुम्हारा बड़ा (गुरु है जिसने तुम सबको जादू सिखाया है तो ख़ैर) अभी तुम लोगों को (इसका नतीजा) मालूम हो जाएगा कि हम यक़ीनन तुम्हारे एक तरफ के हाथ और दूसरी तरफ के पाँव काट डालेगें और तुम सब के सब को सूली देगें
قَالُوا لَا ضَيْرَ ۖ إِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا مُنْقَلِبُونَ 50
वह बोले कुछ परवाह नही हमको तो बहरहाल अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है
إِنَّا نَطْمَعُ أَنْ يَغْفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَايَانَا أَنْ كُنَّا أَوَّلَ الْمُؤْمِنِينَ 51
हम चँकि सबसे पहले ईमान लाए है इसलिए ये उम्मीद रखते हैं कि हमारा परवरदिगार हमारी ख़ताएँ माफ कर देगा
وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ مُوسَىٰ أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِي إِنَّكُمْ مُتَّبَعُونَ 52
और हमने मूसा के पास वही भेजी कि तुम मेरे बन्दों को लेकर रातों रात निकल जाओ क्योंकि तुम्हारा पीछा किया जाएगा
فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ 53
तब फिरऔन ने (लश्कर जमा करने के ख्याल से) तमाम शहरों में (धड़ा धड़) हरकारे रवाना किए
إِنَّ هَٰؤُلَاءِ لَشِرْذِمَةٌ قَلِيلُونَ 54
(और कहा) कि ये लोग मूसा के साथ बनी इसराइल थोड़ी सी (मुट्ठी भर की) जमाअत हैं
وَإِنَّهُمْ لَنَا لَغَائِظُونَ 55
और उन लोगों ने हमें सख्त गुस्सा दिलाया है
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَاذِرُونَ 56
और हम सबके सब बा साज़ों सामान हैं
فَأَخْرَجْنَاهُمْ مِنْ جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ 57
(तुम भी आ जाओ कि सब मिलकर ताअककुब (पीछा) करें)
وَكُنُوزٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ 58
ग़रज़ हमने इन लोगों को (मिस्र के) बाग़ों और चश्मों और खज़ानों और इज्ज़त की जगह से (यूँ) निकाल बाहर किया
كَذَٰلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا بَنِي إِسْرَائِيلَ 59
(और जो नाफरमानी करे) इसी तरह सज़ा होगी और आख़िर हमने उन्हीं चीज़ों का मालिक बनी इसराइल को बनाया
فَأَتْبَعُوهُمْ مُشْرِقِينَ 60
ग़रज़ (मूसा) तो रात ही को चले गए
فَلَمَّا تَرَاءَى الْجَمْعَانِ قَالَ أَصْحَابُ مُوسَىٰ إِنَّا لَمُدْرَكُونَ 61
और उन लोगों ने सूरज निकलते उनका पीछा किया तो जब दोनों जमाअतें (इतनी करीब हुयीं कि) एक दूसरे को देखने लगी तो मूसा के साथी (हैरान होकर) कहने लगे
قَالَ كَلَّا ۖ إِنَّ مَعِيَ رَبِّي سَيَهْدِينِ 62
कि अब तो पकड़े गए मूसा ने कहा हरगिज़ नहीं क्योंकि मेरे साथ मेरा परवरदिगार है
वह फौरन मुझे कोई (मुखलिसी का) रास्ता बता देगा तो हमने मूसा के पास वही भेजी कि अपनी छड़ी दरिया पर मारो (मारना था कि) फौरन दरिया फुट के टुकड़े टुकड़े हो गया तो गोया हर टुकड़ा एक बड़ा ऊँचा पहाड़ था
وَأَزْلَفْنَا ثَمَّ الْآخَرِينَ 64
और हमने उसी जगह दूसरे फरीक (फिरऔन के साथी) को क़रीब कर दिया
وَأَنْجَيْنَا مُوسَىٰ وَمَنْ مَعَهُ أَجْمَعِينَ 65
और मूसा और उसके साथियों को हमने (डूबने से) बचा लिया
ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ 66
फिर दूसरे फरीक़ (फिरऔन और उसके साथियों) को डुबोकर हलाक़ कर दिया
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 67
बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें अक्सर ईमान लाने वाले ही न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 68
और इसमें तो शक ही न था कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है
وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ إِبْرَاهِيمَ 69
और (ऐ रसूल) उन लोगों के सामने इबराहीम का किस्सा बयान करों
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَا تَعْبُدُونَ 70
जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा
قَالُوا نَعْبُدُ أَصْنَامًا فَنَظَلُّ لَهَا عَاكِفِينَ 71
कि तुम लोग किसकी इबादत करते हो तो वह बोले हम बुतों की इबादत करते हैं और उन्हीं के मुजाविर बन जाते हैं
قَالَ هَلْ يَسْمَعُونَكُمْ إِذْ تَدْعُونَ 72
इबराहीम ने कहा भला जब तुम लोग उन्हें पुकारते हो तो वह तुम्हारी कुछ सुनते हैं
أَوْ يَنْفَعُونَكُمْ أَوْ يَضُرُّونَ 73
या तम्हें कुछ नफा या नुक़सान पहुँचा सकते हैं
قَالُوا بَلْ وَجَدْنَا آبَاءَنَا كَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ 74
कहने लगे (कि ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि हमने अपने बाप दादाओं को ऐसा ही करते पाया है
قَالَ أَفَرَأَيْتُمْ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُونَ 75
इबराहीम ने कहा क्या तुमने देखा भी कि जिन चीज़ों कीे तुम परसतिश करते हो
أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمُ الْأَقْدَمُونَ 76
या तुम्हारे अगले बाप दादा (करते थे) ये सब मेरे यक़ीनी दुश्मन हैं
فَإِنَّهُمْ عَدُوٌّ لِي إِلَّا رَبَّ الْعَالَمِينَ 77
मगर सारे जहाँ का पालने वाला जिसने मुझे पैदा किया (वही मेरा दोस्त है)
الَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهْدِينِ 78
फिर वही मेरी हिदायत करता है
وَالَّذِي هُوَ يُطْعِمُنِي وَيَسْقِينِ 79
और वह शख्स जो मुझे (खाना) खिलाता है और मुझे (पानी) पिलाता है
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ 80
और जब बीमार पड़ता हूँ तो वही मुझे शिफा इनायत फरमाता है
وَالَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحْيِينِ 81
और वह वही हेै जो मुझे मार डालेगा और उसके बाद (फिर) मुझे ज़िन्दा करेगा
وَالَّذِي أَطْمَعُ أَنْ يَغْفِرَ لِي خَطِيئَتِي يَوْمَ الدِّينِ 82
और वह वही है जिससे मै उम्मीद रखता हूँ कि क़यामत के दिन मेरी ख़ताओं को बख्श देगा
رَبِّ هَبْ لِي حُكْمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ 83
परवरदिगार मुझे इल्म व फहम अता फरमा और मुझे नेकों के साथ शामिल कर
وَاجْعَلْ لِي لِسَانَ صِدْقٍ فِي الْآخِرِينَ 84
और आइन्दा आने वाली नस्लों में मेरा ज़िक्रे ख़ैर क़ायम रख
وَاجْعَلْنِي مِنْ وَرَثَةِ جَنَّةِ النَّعِيمِ 85
और मुझे भी नेअमत के बाग़ (बेहश्त) के वारिसों में से बना
وَاغْفِرْ لِأَبِي إِنَّهُ كَانَ مِنَ الضَّالِّينَ 86
और मेरे (मुँह बोले) बाप (चचा आज़र) को बख्श दे क्योंकि वह गुमराहों में से है
وَلَا تُخْزِنِي يَوْمَ يُبْعَثُونَ 87
और जिस दिन लोग क़ब्रों से उठाए जाएँगें मुझे रुसवा न करना
يَوْمَ لَا يَنْفَعُ مَالٌ وَلَا بَنُونَ 88
जिस दिन न तो माल ही कुछ काम आएगा और न लड़के बाले
إِلَّا مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ 89
मगर जो शख्स ख़ुदा के सामने (गुनाहों से) पाक दिल लिए हुए हाज़िर होगा (वह फायदे में रहेगा)
وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ 90
और बेहश्त परहेज़ गारों के क़रीब कर दी जाएगी
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ 91
और दोज़ख़ गुमराहों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी
وَقِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُونَ 92
और उन लोगों (अहले जहन्नुम) से पूछा जाएगा कि ख़ुदा को छोड़कर जिनकी तुम परसतिश करते थे (आज) वह कहाँ हैं
مِنْ دُونِ اللَّهِ هَلْ يَنْصُرُونَكُمْ أَوْ يَنْتَصِرُونَ 93
क्या वह तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं या वह ख़ुद अपनी आप बाहम मदद कर सकते हैं
فَكُبْكِبُوا فِيهَا هُمْ وَالْغَاوُونَ 94
फिर वह (माबूद) और गुमराह लोग और शैतान का लशकर
وَجُنُودُ إِبْلِيسَ أَجْمَعُونَ 95
(ग़रज़ सबके सब) जहन्नुम में औधें मुँह ढकेल दिए जाएँगे
قَالُوا وَهُمْ فِيهَا يَخْتَصِمُونَ 96
और ये लोग जहन्नुम में बाहम झगड़ा करेंगे और अपने माबूद से कहेंगे
تَاللَّهِ إِنْ كُنَّا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ 97
ख़ुदा की क़सम हम लोग तो यक़ीनन सरीही गुमराही में थे
إِذْ نُسَوِّيكُمْ بِرَبِّ الْعَالَمِينَ 98
कि हम तुम को सारे जहाँन के पालने वाले (ख़ुदा) के बराबर समझते रहे
وَمَا أَضَلَّنَا إِلَّا الْمُجْرِمُونَ 99
और हमको बस (उन) गुनाहगारों ने (जो मुझसे पहले हुए) गुमराह किया
فَمَا لَنَا مِنْ شَافِعِينَ 100
तो अब तो न कोई (साहब) मेरी सिफारिश करने वाले हैं
और न कोई दिलबन्द दोस्त हैं
فَلَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ 102
तो काश हमें अब दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रुर) ईमान वालों से होते
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 103
इबराहीम के इस किस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें से अक्सर ईमान लाने वाले थे भी नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 104
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है
كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ الْمُرْسَلِينَ 105
(यूँ ही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरो को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ 106
कि जब उनसे उन के भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मै तो तुम्हारा यक़ीनी अमानत दार पैग़म्बर हूँ
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ 107
तुम खुदा से डरो और मेरी इताअत करो
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 108
और मैं इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ उजरत तो माँगता नहीं
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ 109
मेरी उजरत तो बस सारे जहाँ के पालने वाले ख़ुदा पर है
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 110
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो वह लोग बोले जब कमीनो मज़दूरों वग़ैरह ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है
قَالُوا أَنُؤْمِنُ لَكَ وَاتَّبَعَكَ الْأَرْذَلُونَ 111
तो हम तुम पर क्या ईमान लाएं
قَالَ وَمَا عِلْمِي بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ 112
नूह ने कहा ये लोग जो कुछ करते थे मुझे क्या ख़बर (और क्या ग़रज़)
إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّي ۖ لَوْ تَشْعُرُونَ 113
इन लोगों का हिसाब तो मेरे परवरदिगार के ज़िम्मे है
وَمَا أَنَا بِطَارِدِ الْمُؤْمِنِينَ 114
काश तुम (इतनी) समझ रखते और मै तो ईमानदारों को अपने पास से निकालने वाला नहीं
إِنْ أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُبِينٌ 115
मै तो सिर्फ (अज़ाबे ख़ुदा से) साफ साफ डराने वाला हूँ
قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا نُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمَرْجُومِينَ 116
वह लोग कहने लगे ऐ नूह अगर तुम अपनी हरकत से बाज़ न आओगे तो ज़रुर संगसार कर दिए जाओगे
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِي كَذَّبُونِ 117
नूह ने अर्ज की परवरदिगार मेरी क़ौम ने यक़ीनन मुझे झुठलाया
فَافْتَحْ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ فَتْحًا وَنَجِّنِي وَمَنْ مَعِيَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ 118
तो अब तू मेरे और इन लोगों के दरमियान एक क़तई फैसला कर दे और मुझे और जो मोमिनीन मेरे साथ हें उनको नजात दे
فَأَنْجَيْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ 119
ग़रज़ हमने नूह और उनके साथियों को जो भरी हुई कश्ती में थे नजात दी
ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ الْبَاقِينَ 120
फिर उसके बाद हमने बाक़ी लोगों को ग़रक कर दिया
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 121
बेशक इसमे भी यक़ीनन बड़ी इबरत है और उनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 122
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है
كَذَّبَتْ عَادٌ الْمُرْسَلِينَ 123
(इसी तरह क़ौम) आद ने पैग़म्बरों को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ 124
जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नही डरते
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ 125
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 126
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ 127
मै तो तुम से इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी उजरत तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है
أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ آيَةً تَعْبَثُونَ 128
तो क्या तुम ऊँची जगह पर बेकार यादगारे बनाते फिरते हो
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ 129
और बड़े बड़े महल तामीर करते हो गोया तुम हमेशा (यहीं) रहोगे
وَإِذَا بَطَشْتُمْ بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ 130
और जब तुम (किसी पर) हाथ डालते हो तो सरकशी से हाथ डालते हो
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 131
तो तुम ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
وَاتَّقُوا الَّذِي أَمَدَّكُمْ بِمَا تَعْلَمُونَ 132
और उस शख्स से डरो जिसने तुम्हारी उन चीज़ों से मदद की जिन्हें तुम खूब जानते हो
أَمَدَّكُمْ بِأَنْعَامٍ وَبَنِينَ 133
अच्छा सुनो उसने तुम्हारे चार पायों और लड़के बालों वग़ैरह और चश्मों से मदद की
मै तो यक़ीनन तुम पर
إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ 135
एक बड़े (सख्त) रोज़ के अज़ाब से डरता हूँ
قَالُوا سَوَاءٌ عَلَيْنَا أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُنْ مِنَ الْوَاعِظِينَ 136
वह लोग कहने लगे ख्वाह तुम नसीहत करो या न नसीहत करो हमारे वास्ते (सब) बराबर है
إِنْ هَٰذَا إِلَّا خُلُقُ الْأَوَّلِينَ 137
ये (डरावा) तो बस अगले लोगों की आदत है
وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ 138
हालाँकि हम पर अज़ाब (वग़ैरह अब) किया नहीं जाएगा
فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَاهُمْ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 139
ग़रज़ उन लोगों ने हूद को झुठला दिया तो हमने भी उनको हलाक कर डाला बेशक इस वाक़िये में यक़ीनी एक बड़ी इबरत है आर उनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले भी न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 140
और इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
كَذَّبَتْ ثَمُودُ الْمُرْسَلِينَ 141
(इसी तरह क़ौम) समूद ने पैग़म्बरों को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَالِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ 142
जब उनके भाई सालेह ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यो नहीं डरते
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ 143
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 144
तो खुदा से डरो और मेरी इताअत करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ 145
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता- मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा पर है)
أَتُتْرَكُونَ فِي مَا هَاهُنَا آمِنِينَ 146
क्या जो चीजें यहाँ (दुनिया में) मौजूद है
बाग़ और चश्में और खेतिया और छुहारे जिनकी कलियाँ लतीफ़ व नाज़ुक होती है
وَزُرُوعٍ وَنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيمٌ 148
उन्हीं मे तुम लोग इतमिनान से (हमेशा के लिए) छोड़ दिए जाओगे
وَتَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا فَارِهِينَ 149
और (इस वजह से) पूरी महारत और तकलीफ के साथ पहाड़ों को काट काट कर घर बनाते हो
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 150
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
وَلَا تُطِيعُوا أَمْرَ الْمُسْرِفِينَ 151
और ज्यादती करने वालों का कहा न मानों
الَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ 152
जो रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाया करते हैं और (ख़राबियों की) इसलाह नहीं करते
قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ 153
वह लोग बोले कि तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हो)
مَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا فَأْتِ بِآيَةٍ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ 154
तुम भी तो आख़िर हमारे ही ऐसे आदमी हो पस अगर तुम सच्चे हो तो कोई मौजिज़ा हमारे पास ला (दिखाओ)
قَالَ هَٰذِهِ نَاقَةٌ لَهَا شِرْبٌ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍ مَعْلُومٍ 155
सालेह ने कहा- यही ऊँटनी (मौजिज़ा) है एक बारी इसके पानी पीने की है और एक मुक़र्रर दिन तुम्हारे पीने का
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍ 156
और इसको कोई तकलीफ़ न पहुँचाना वरना एक बड़े (सख्त) ज़ोर का अज़ाब तुम्हे ले डालेगा
فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا نَادِمِينَ 157
इस पर भी उन लोगों ने उसके पाँव काट डाले और (उसको मार डाला) फिर ख़़ुद पशेमान हुए
فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 158
फिर उन्हें अज़ाब ने ले डाला-बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें के बहुतेरे ईमान लाने वाले भी न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 159
और इसमें शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और मेहरबान है
كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ الْمُرْسَلِينَ 160
इसी तरह लूत की क़ौम ने पैग़म्बरों को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ 161
जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ 162
मै तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ तो ख़ुदा से डरो
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 163
और मेरी इताअत करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ 164
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है
أَتَأْتُونَ الذُّكْرَانَ مِنَ الْعَالَمِينَ 165
क्या तुम लोग (शहवत परस्ती के लिए) सारे जहाँ के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ ۚ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ عَادُونَ 166
और तुम्हारे वास्ते जो बीवियाँ तुम्हारे परवरदिगार ने पैदा की है उन्हें छोड़ देते हो (ये कुछ नहीं) बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो
قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا لُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمُخْرَجِينَ 167
उन लोगों ने कहा ऐ लूत अगर तुम बाज़ न आओगे तो तुम ज़रुर निकल बाहर कर दिए जाओगे
قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُمْ مِنَ الْقَالِينَ 168
लूत ने कहा मै यक़ीनन तुम्हारी (नाशाइसता) हरकत से बेज़ार हूँ
رَبِّ نَجِّنِي وَأَهْلِي مِمَّا يَعْمَلُونَ 169
(और दुआ की) परवरदिगार जो कुछ ये लोग करते है उससे मुझे और मेरे लड़कों को नजात दे
فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ 170
तो हमने उनको और उनके सब लड़कों को नजात दी
إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ 171
मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गयी
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ 172
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِينَ 173
और उन पर हमने (पत्थरों का) मेंह बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराया गया था
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 174
उन पर क्या बड़ी बारिश हुई इस वाक़िये में भी एक बड़ी इबरत है और इनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 175
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
كَذَّبَ أَصْحَابُ الْأَيْكَةِ الْمُرْسَلِينَ 176
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ أَلَا تَتَّقُونَ 177
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ 178
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ 179
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ 180
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के ज़िम्मे है
أَوْفُوا الْكَيْلَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُخْسِرِينَ 181
तुम (जब कोई चीज़ नाप कर दो तो) पूरा पैमाना दिया करो और नुक़सान (कम देने वाले) न बनो
وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ 182
और तुम (जब तौलो तो) ठीक तराज़ू से डन्डी सीधी रखकर तौलो
وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ 183
और लोगों को उनकी चीज़े (जो ख़रीदें) कम न ज्यादा करो और ज़मीन से फसाद न फैलाते फिरो
وَاتَّقُوا الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالْجِبِلَّةَ الْأَوَّلِينَ 184
और उस (ख़ुदा) से डरो जिसने तुम्हे और अगली ख़िलकत को पैदा किया
قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ 185
वह लोग कहने लगे तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हों)
وَمَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَإِنْ نَظُنُّكَ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ 186
और तुम तो हमारे ही ऐसे एक आदमी हो और हम लोग तो तुमको झूठा ही समझते हैं
فَأَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًا مِنَ السَّمَاءِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ 187
तो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर आसमान का एक टुकड़ा गिरा दो
قَالَ رَبِّي أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ 188
और शुएब ने कहा जो तुम लोग करते हो मेरा परवरदिगार ख़ूब जानता है
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ الظُّلَّةِ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ 189
ग़रज़ उन लोगों ने शुएब को झुठलाया तो उन्हें साएबान (अब्र) के अज़ाब ने ले डाला- इसमे शक नहीं कि ये भी एक बड़े (सख्त) दिन का अज़ाब था
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ 190
इसमे भी शक नहीं कि इसमें (समझदारों के लिए) एक बड़ी इबरत है और उनमें के बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ 191
और बेशक तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
وَإِنَّهُ لَتَنْزِيلُ رَبِّ الْعَالَمِينَ 192
और (ऐ रसूल) बेशक ये (क़ुरान) सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) का उतारा हुआ है
نَزَلَ بِهِ الرُّوحُ الْأَمِينُ 193
जिसे रुहुल अमीन (जिबरील) साफ़ अरबी ज़बान में लेकर तुम्हारे दिल पर नाज़िल हुए है
عَلَىٰ قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ الْمُنْذِرِينَ 194
ताकि तुम भी और पैग़म्बरों की तरह
بِلِسَانٍ عَرَبِيٍّ مُبِينٍ 195
लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ
وَإِنَّهُ لَفِي زُبُرِ الْأَوَّلِينَ 196
और बेशक इसकी ख़बर अगले पैग़म्बरों की किताबों मे (भी मौजूद) है
أَوَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ آيَةً أَنْ يَعْلَمَهُ عُلَمَاءُ بَنِي إِسْرَائِيلَ 197
क्या उनके लिए ये कोई (काफ़ी) निशानी नहीं है कि इसको उलेमा बनी इसराइल जानते हैं
وَلَوْ نَزَّلْنَاهُ عَلَىٰ بَعْضِ الْأَعْجَمِينَ 198
और अगर हम इस क़ुरान को किसी दूसरी ज़बान वाले पर नाज़िल करते
فَقَرَأَهُ عَلَيْهِمْ مَا كَانُوا بِهِ مُؤْمِنِينَ 199
और वह उन अरबो के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर ईमान लाने वाले न थे
كَذَٰلِكَ سَلَكْنَاهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ 200
इसी तरह हमने (गोया ख़ुद) इस इन्कार को गुनाहगारों के दिलों में राह दी
لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ حَتَّىٰ يَرَوُا الْعَذَابَ الْأَلِيمَ 201
ये लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब को न देख लेगें उस पर ईमान न लाएँगे
فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ 202
कि वह यकायक इस हालत में उन पर आ पडेग़ा कि उन्हें ख़बर भी न होगी
فَيَقُولُوا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُونَ 203
(मगर जब अज़ाब नाज़िल होगा) तो वह लोग कहेंगे कि क्या हमें (इस वक्त क़ुछ) मोहलत मिल सकती है
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ 204
तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं
أَفَرَأَيْتَ إِنْ مَتَّعْنَاهُمْ سِنِينَ 205
तो क्या तुमने ग़ौर किया कि अगर हम उनको सालो साल चैन करने दे
ثُمَّ جَاءَهُمْ مَا كَانُوا يُوعَدُونَ 206
उसके बाद जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा किया जाता है उनके पास आ पहुँचे
مَا أَغْنَىٰ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يُمَتَّعُونَ 207
तो जिन चीज़ों से ये लोग चैन किया करते थे कुछ भी काम न आएँगी
وَمَا أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنْذِرُونَ 208
और हमने किसी बस्ती को बग़ैर उसके हलाक़ नहीं किया कि उसके समझाने को (पहले से) डराने वाले (पैग़म्बर भेज दिए) थे
ذِكْرَىٰ وَمَا كُنَّا ظَالِمِينَ 209
और हम ज़ालिम नहीं है
وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ الشَّيَاطِينُ 210
और इस क़ुरान को शयातीन लेकर नाज़िल नही हुए
وَمَا يَنْبَغِي لَهُمْ وَمَا يَسْتَطِيعُونَ 211
और ये काम न तो उनके लिए मुनासिब था और न वह कर सकते थे
إِنَّهُمْ عَنِ السَّمْعِ لَمَعْزُولُونَ 212
बल्कि वह तो (वही के) सुनने से महरुम हैं
فَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَتَكُونَ مِنَ الْمُعَذَّبِينَ 213
(ऐ रसूल) तुम ख़ुदा के साथ किसी दूसरे माबूद की इबादत न करो वरना तुम भी मुबतिलाए अज़ाब किए जाओगे
وَأَنْذِرْ عَشِيرَتَكَ الْأَقْرَبِينَ 214
और (ऐ रसूल) तुम अपने क़रीबी रिश्तेदारों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ
وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ 215
और जो मोमिनीन तुम्हारे पैरो हो गए हैं उनके सामने अपना बाजू झुकाओ
فَإِنْ عَصَوْكَ فَقُلْ إِنِّي بَرِيءٌ مِمَّا تَعْمَلُونَ 216
(तो वाज़ेए करो) पस अगर लोग तुम्हारी नाफ़रमानी करें तो तुम (साफ साफ) कह दो कि मैं तुम्हारे करतूतों से बरी उज़ ज़िम्मा हूँ
وَتَوَكَّلْ عَلَى الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ 217
और तुम उस (ख़ुदा) पर जो सबसे (ग़ालिब और) मेहरबान है
الَّذِي يَرَاكَ حِينَ تَقُومُ 218
भरोसा रखो कि जब तुम (नमाजे तहज्जुद में) खड़े होते हो
وَتَقَلُّبَكَ فِي السَّاجِدِينَ 219
और सजदा
إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ 220
करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठना बैठना सजदा रुकूउ वगैरह सब) देखता है
هَلْ أُنَبِّئُكُمْ عَلَىٰ مَنْ تَنَزَّلُ الشَّيَاطِينُ 221
बेशक वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है क्या मै तुम्हें बता दूँ कि शयातीन किन लोगों पर नाज़िल हुआ करते हैं
تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ 222
(लो सुनो) ये लोग झूठे बद किरदार पर नाज़िल हुआ करते हैं
يُلْقُونَ السَّمْعَ وَأَكْثَرُهُمْ كَاذِبُونَ 223
जो (फ़रिश्तों की बातों पर कान लगाए रहते हैं) कि कुछ सुन पाएँ
وَالشُّعَرَاءُ يَتَّبِعُهُمُ الْغَاوُونَ 224
हालाँकि उनमें के अक्सर तो (बिल्कुल) झूठे हैं और शायरों की पैरवी तो गुमराह लोग किया करते हैं
أَلَمْ تَرَ أَنَّهُمْ فِي كُلِّ وَادٍ يَهِيمُونَ 225
क्या तुम नहीं देखते कि ये लोग जंगल जंगल सरगिरदॉ मारे मारे फिरते हैं
وَأَنَّهُمْ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ 226
और ये लोग ऐसी बाते कहते हैं जो कभी करते नहीं
मगर (हाँ) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और क़सरत से ख़ुदा का ज़िक्र किया करते हैं और जब उन पर ज़ुल्म किया जा चुका उसके बाद उन्होंनें बदला लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि वह किस जगह लौटाए जाएँगें