जब क़यामत बरपा होगी और उसके वाक़िया होने में ज़रा झूट नहीं
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ 2
(उस वक्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा)
कि किसी को पस्त करेगी किसी को बुलन्द
إِذَا رُجَّتِ الْأَرْضُ رَجًّا 4
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी
और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे
فَكَانَتْ هَبَاءً مُنْبَثًّا 6
फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे
وَكُنْتُمْ أَزْوَاجًا ثَلَاثَةً 7
और तुम लोग तीन किस्म हो जाओगे
فَأَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ 8
तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं
وَأَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ 9
और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं
وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ 10
और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे
यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रिब हैं
आराम व आसाइश के बाग़ों में बहुत से
तो अगले लोगों में से होंगे
और कुछ थोडे से पिछले लोगों में से मोती
और याक़ूत से जड़े हुए सोने के तारों से बने हुए
مُتَّكِئِينَ عَلَيْهَا مُتَقَابِلِينَ 16
तख्ते पर एक दूसरे के सामने तकिए लगाए (बैठे) होंगे
يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُخَلَّدُونَ 17
नौजवान लड़के जो (बेहिश्त में) हमेशा (लड़के ही बने) रहेंगे
بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِنْ مَعِينٍ 18
(शरबत वग़ैरह के) सागर और चमकदार टोंटीदार कंटर और शफ्फ़ाफ़ शराब के जाम लिए हुए उनके पास चक्कर लगाते होंगे
لَا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنْزِفُونَ 19
जिसके (पीने) से न तो उनको (ख़ुमार से) दर्दसर होगा और न वह बदहवास मदहोश होंगे
وَفَاكِهَةٍ مِمَّا يَتَخَيَّرُونَ 20
और जिस क़िस्म के मेवे पसन्द करें
وَلَحْمِ طَيْرٍ مِمَّا يَشْتَهُونَ 21
और जिस क़िस्म के परिन्दे का गोश्त उनका जी चाहे (सब मौजूद है)
और बड़ी बड़ी ऑंखों वाली हूरें
كَأَمْثَالِ اللُّؤْلُؤِ الْمَكْنُونِ 23
जैसे एहतेयात से रखे हुए मोती
جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ 24
ये बदला है उनके (नेक) आमाल का
لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا 25
वहाँ न तो बेहूदा बात सुनेंगे और न गुनाह की बात
إِلَّا قِيلًا سَلَامًا سَلَامًا 26
(फहश) बस उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा
وَأَصْحَابُ الْيَمِينِ مَا أَصْحَابُ الْيَمِينِ 27
और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है
बे काँटे की बेरो और लदे गुथे हुए
केलों और लम्बी लम्बी छाँव
और झरनो के पानी
और अनारों
मेवो में होंगें
لَا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ 33
जो न कभी खत्म होंगे और न उनकी कोई रोक टोक
और ऊँचे ऊँचे (नरम गद्दो के) फ़र्शों में (मज़े करते) होंगे
إِنَّا أَنْشَأْنَاهُنَّ إِنْشَاءً 35
(उनको) वह हूरें मिलेंगी जिसको हमने नित नया पैदा किया है
فَجَعَلْنَاهُنَّ أَبْكَارًا 36
तो हमने उन्हें कुँवारियाँ प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया
(ये सब सामान)
दाहिने हाथ (में नामए आमाल लेने) वालों के वास्ते है
(इनमें) बहुत से तो अगले लोगों में से
और बहुत से पिछले लोगों में से
وَأَصْحَابُ الشِّمَالِ مَا أَصْحَابُ الشِّمَالِ 41
और बाएं हाथ (में नामए आमाल लेने) वाले (अफसोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं
(दोज़ख़ की) लौ और खौलते हुए पानी
और काले सियाह धुएँ के साये में होंगे
जो न ठन्डा और न ख़ुश आइन्द
إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُتْرَفِينَ 45
ये लोग इससे पहले (दुनिया में) ख़ूब ऐश उड़ा चुके थे
وَكَانُوا يُصِرُّونَ عَلَى الْحِنْثِ الْعَظِيمِ 46
और बड़े गुनाह (शिर्क) पर अड़े रहते थे
وَكَانُوا يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ 47
और कहा करते थे कि भला जब हम मर जाएँगे और (सड़ गल कर) मिटटी और हडिडयाँ (ही हडिडयाँ) रह जाएँगे
أَوَآبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ 48
तो क्या हमें या हमारे अगले बाप दादाओं को फिर उठना है
قُلْ إِنَّ الْأَوَّلِينَ وَالْآخِرِينَ 49
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगले और पिछले
لَمَجْمُوعُونَ إِلَىٰ مِيقَاتِ يَوْمٍ مَعْلُومٍ 50
सब के सब रोजे मुअय्यन की मियाद पर ज़रूर इकट्ठे किए जाएँगे
ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا الضَّالُّونَ الْمُكَذِّبُونَ 51
फिर तुमको बेशक ऐ गुमराहों झुठलाने वालों
لَآكِلُونَ مِنْ شَجَرٍ مِنْ زَقُّومٍ 52
यक़ीनन (जहन्नुम में) थोहड़ के दरख्तों में से खाना होगा
فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ 53
तो तुम लोगों को उसी से (अपना) पेट भरना होगा
فَشَارِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ الْحَمِيمِ 54
फिर उसके ऊपर खौलता हुआ पानी पीना होगा
فَشَارِبُونَ شُرْبَ الْهِيمِ 55
और पियोगे भी तो प्यासे ऊँट का सा (डग डगा के) पीना
هَٰذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ الدِّينِ 56
क़यामत के दिन यही उनकी मेहमानी होगी
نَحْنُ خَلَقْنَاكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ 57
तुम लोगों को (पहली बार भी) हम ही ने पैदा किया है
أَفَرَأَيْتُمْ مَا تُمْنُونَ 58
फिर तुम लोग (दोबार की) क्यों नहीं तस्दीक़ करते
أَأَنْتُمْ تَخْلُقُونَهُ أَمْ نَحْنُ الْخَالِقُونَ 59
तो जिस नुत्फे क़ो तुम (औरतों के रहम में डालते हो) क्या तुमने देख भाल लिया है क्या तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं
نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ الْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ 60
हमने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और हम उससे आजिज़ नहीं हैं
عَلَىٰ أَنْ نُبَدِّلَ أَمْثَالَكُمْ وَنُنْشِئَكُمْ فِي مَا لَا تَعْلَمُونَ 61
कि तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को इस (सूरत) में पैदा करें जिसे तुम मुत्तलक़ नहीं जानते
وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْأَةَ الْأُولَىٰ فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ 62
और तुमने पैहली पैदाइश तो समझ ही ली है (कि हमने की) फिर तुम ग़ौर क्यों नहीं करते
أَفَرَأَيْتُمْ مَا تَحْرُثُونَ 63
भला देखो तो कि जो कुछ तुम लोग बोते हो क्या
أَأَنْتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ 64
तुम लोग उसे उगाते हो या हम उगाते हैं अगर हम चाहते
لَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ 65
तो उसे चूर चूर कर देते तो तुम बातें ही बनाते रह जाते
कि (हाए) हम तो (मुफ्त) तावान में फॅसे (नहीं)
हम तो बदनसीब हैं
أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ 68
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जो (दिन रात) पीते हो
أَأَنْتُمْ أَنْزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنْزِلُونَ 69
क्या उसको बादल से तुमने बरसाया है या हम बरसाते हैं
لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ 70
अगर हम चाहें तो उसे खारी बना दें तो तुम लोग यक्र क्यों नहीं करते
أَفَرَأَيْتُمُ النَّارَ الَّتِي تُورُونَ 71
तो क्या तुमने आग पर भी ग़ौर किया जिसे तुम लोग लकड़ी से निकालते हो
أَأَنْتُمْ أَنْشَأْتُمْ شَجَرَتَهَا أَمْ نَحْنُ الْمُنْشِئُونَ 72
क्या उसके दरख्त को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं
نَحْنُ جَعَلْنَاهَا تَذْكِرَةً وَمَتَاعًا لِلْمُقْوِينَ 73
हमने आग को (जहन्नुम की) याद देहानी और मुसाफिरों के नफे के (वास्ते पैदा किया)
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ 74
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो
فَلَا أُقْسِمُ بِمَوَاقِعِ النُّجُومِ 75
तो मैं तारों के मनाज़िल की क़सम खाता हूँ
وَإِنَّهُ لَقَسَمٌ لَوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ 76
और अगर तुम समझो तो ये बड़ी क़सम है
कि बेशक ये बड़े रूतबे का क़ुरान है
जो किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है
لَا يَمَسُّهُ إِلَّا الْمُطَهَّرُونَ 79
इसको बस वही लोग छूते हैं जो पाक हैं
تَنْزِيلٌ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ 80
सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से (मोहम्मद पर) नाज़िल हुआ है
أَفَبِهَٰذَا الْحَدِيثِ أَنْتُمْ مُدْهِنُونَ 81
तो क्या तुम लोग इस कलाम से इन्कार रखते हो
وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ 82
और तुमने अपनी रोज़ी ये करार दे ली है कि (उसको) झुठलाते हो
فَلَوْلَا إِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُومَ 83
तो क्या जब जान गले तक पहुँचती है
وَأَنْتُمْ حِينَئِذٍ تَنْظُرُونَ 84
और तुम उस वक्त (क़ी हालत) पड़े देखा करते हो
وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْكُمْ وَلَٰكِنْ لَا تُبْصِرُونَ 85
और हम इस (मरने वाले) से तुमसे भी ज्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुमको दिखाई नहीं देता
فَلَوْلَا إِنْ كُنْتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ 86
तो अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो
تَرْجِعُونَهَا إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ 87
तो अगर (अपने दावे में) तुम सच्चे हो तो रूह को फेर क्यों नहीं देते
فَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِينَ 88
पस अगर वह (मरने वाला ख़ुदा के) मुक़र्रेबीन से है
فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّتُ نَعِيمٍ 89
तो (उस के लिए) आराम व आसाइश है और ख़ुशबूदार फूल और नेअमत के बाग़
وَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ 90
और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है
فَسَلَامٌ لَكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ 91
तो (उससे कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो
وَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنَ الْمُكَذِّبِينَ الضَّالِّينَ 92
और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है
तो (उसकी) मेहमानी खौलता हुआ पानी है
और जहन्नुम में दाखिल कर देना
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ حَقُّ الْيَقِينِ 95
बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ 96
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो