مِثْلَ دَأْبِ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَالَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ ۚ وَمَا اللَّهُ يُرِيدُ ظُلْمًا لِلْعِبَادِ 31
(कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ और ख़ुदा तो बन्दों पर ज़ुल्म करना चाहता ही नहीं