और यतीमों को कारोबार में लगाए रहो यहॉ तक के ब्याहने के क़ाबिल हों फिर उस वक्त तुम उन्हे (एक महीने का ख़र्च) उनके हाथ से कराके अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे फ़ुज़ूल ख़र्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हॉ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजिबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी ही है