और अहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालॉकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहॉ से (उतरा) है हालॉकि वह ख़ुदा के यहॉ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं