إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ 1
हमने (इस कुरान) को शबे क़द्र में नाज़िल (करना शुरू) किया
وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ 2
और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है
لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ 3
शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है
تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ 4
इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाज़िल होते हैं
سَلَامٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ الْفَجْرِ 5
ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है