(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की क़सम
और रात की जब (चीज़ों को) छुपा ले
مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَىٰ 3
कि तुम्हारा परवरदिगार न तुमको छोड़ बैठा और (न तुमसे) नाराज़ हुआ
وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولَىٰ 4
और तुम्हारे वास्ते आख़ेरत दुनिया से यक़ीनी कहीं बेहतर है
وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَىٰ 5
और तुम्हारा परवरदिगार अनक़रीब इस क़दर अता करेगा कि तुम ख़ुश हो जाओ
أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ 6
क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रूर दी)
और तुमको एहकाम से नावाकिफ़ देखा तो मंज़िले मक़सूद तक पहुँचा दिया
وَوَجَدَكَ عَائِلًا فَأَغْنَىٰ 8
और तुमको तंगदस्त देखकर ग़नी कर दिया
فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ 9
तो तुम भी यतीम पर सितम न करना
وَأَمَّا السَّائِلَ فَلَا تَنْهَرْ 10
माँगने वाले को झिड़की न देना
وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ 11
और अपने परवरदिगार की नेअमतों का ज़िक्र करते रहना