فَإِذَا قَضَيْتُمُ الصَّلَاةَ فَاذْكُرُوا اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ ۚ فَإِذَا اطْمَأْنَنْتُمْ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ ۚ إِنَّ الصَّلَاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَوْقُوتًا 103
फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो उठते बैठते लेटते (ग़रज़ हर हाल में) ख़ुदा को याद करो फिर जब तुम (दुश्मनों से) मुतमईन हो जाओ तो (अपने मअमूल) के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ा करो क्योंकि नमाज़ तो ईमानदारों पर वक्त मुतय्यन करके फ़र्ज़ की गयी है