تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ 16
(रात) के वक्त उनके पहलू बिस्तरों से आशना नहीं होते और (अज़ाब के) ख़ौफ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है उसमें से (ख़ुदा की) राह में ख़र्च करते हैं