Translation Surah Saba Ayat 31

Translation Suhel Farooq Khan (Suhel Farooq Khan)

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَنْ نُؤْمِنَ بِهَٰذَا الْقُرْآنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ وَلَوْ تَرَىٰ إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنْتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ 31

और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते)